महिलाओं के प्रति नजरिया बदलने से ही रुकेंगे दुष्कर्म के मामले: डॉ ज्योति सिडान

महिलाओं के प्रति नजरिया बदलने से ही रुकेंगे दुष्कर्म के मामले: डॉ ज्योति सिडान
सवाल यह उठता है कि क्या बलात्कार को सामूहिक आतंकवाद की संज्ञा दी जा सकती है क्योंकि आतंकवाद में भी भय उत्पन्न कर दूसरों के व्यवहार पर नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया जाता है।
नारीवादी विमर्श में बलात्कार को आमतौर पर महिलाओं के विरुद्ध पुरुष द्वारा की गई यौन हिंसा के रूप में परिभाषित किया जाता है। परंतु यहां यह तर्क भी दिया जा सकता है कि बलात्कार के वैचारिक विश्लेषण में पितृसत्ता के अलावा सत्ता के अन्य आयामों का भी मूल्यांकन किया जाना चाहिए। सुसान ब्राउनमिलर के अनुसार बलात्कार डराने-धमकाने की एक सचेत प्रक्रिया है, जिसके द्वारा पुरुष महिलाओं को भय की स्थिति में रखते हैं। ब्राउनमिलर अपनी पुस्तक ‘अगेंस्ट अवर विल’ में कानूनों और सार्वजनिक दृष्टिकोण दोनों को बदलने और एक ऐसी संस्कृति को बदलने की समर्थक बनकर उभरती हैं, जो महिलाओं की शारीरिक स्वायत्तता को कम आंकती थी। संभवत: यह कहा जा सकता है कि महिलाओं की स्वायत्तता की उपेक्षा और उनमें भय का मनोविज्ञान बनाए रखना पुरुषसत्ता के अस्तित्व की महत्त्वपूर्ण शर्त है।
हाल ही फरवरी माह के अंतिम सप्ताह की ही कुछ घटनाओं पर अगर नजर डालें तो यह बात सत्य साबित हो जाती है। जयपुर में सात वर्षीय लड़की को उसके पड़ोसी ने अगवा कर बलात्कार किया और फिर उसकी हत्या कर उसकी लाश छत पर फेंक दी। डीडवाना जिले के मौलासर क्षेत्र में अपनी सहेली के घर से किताब लेकर लौट रही एक नाबालिग छात्रा के साथ पांच युवकों द्वारा गैंगरेप करने का मामला सामने आया है। आरोपी इस पीड़िता को दो वर्ष से ब्लेकमेल कर दुष्कर्म करते आ रहे थे। वहीं पुणे के स्वारगेट बस स्टैंड पर खड़ी महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम की बस में 26 वर्षीय महिला के साथ बलात्कार का मामला सामने आया। हैवानियत अभी रुकी नहीं है महाराष्ट्र के नालासोपारा में एक पिता को अपनी ही तीन बेटियों के साथ बलात्कार करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया और तो और वयस्क ही नहीं, अपितु नाबालिग भी इन घटनाओं को अंजाम देने में पीछे नहीं रहे। डौंड तहसील के स्कूल की एक छात्रा ने टीचर को बताया कि एक छात्र ने अपने माता-पिता के जाली साइन किए। अपनी शिकायत सुनकर उस छात्र ने बदला लेने के लिए दूसरी क्लास के एक छात्र को 100 रुपए देकर उस छात्रा का रेप और हत्या करने को कहा।
लेखिका ग्लोरिया स्टीनम लिखती हैं कि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपने शरीर पर अधिकार लोकतंत्र की स्थापना का पहला कदम है और इस आधार पर महिलाएं विशेष रूप से वे जो नस्ल, जाति या वर्ग के आधार पर अवमूल्यित हैं, अब भी अंतरंग तानाशाही के अधीन हैं। सवाल यह उठता है कि क्या बलात्कार को सामूहिक आतंकवाद की संज्ञा दी जा सकती है क्योंकि आतंकवाद में भी भय उत्पन्न कर दूसरों के व्यवहार पर नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया जाता है और बलात्कार में भी महिला व्यवहार को नियंत्रित करना, उन पर अपना आधिपत्य स्थापित करना शामिल होता है। पहले के समय में अधिकांशत: बलात्कार की घटनाओं के लिए अपरिचित/अजनबी जिम्मेदार होता था लेकिन आज तो परिवार का कोई भी सदस्य पति, देवर, पिता, भाई, दादा, नाना, मामा, चाचा और मित्र इन घटनाओं में संलग्न देखा जा सकता है।
संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार बलात्कार की घटनाओं में 8% की वृद्धि देखी गई यानी वर्ष 2024 में 3054 मामले दर्ज किए गए जबकि वर्ष 2023 में 2826 मामले दर्ज किए गए थे। महिलाओं के विरुद्ध होने वाले इस गंभीर अपराध की सरकार और कानून व्यवस्था उपेक्षा कैसे कर सकती है? एक सत्तासीन व्यक्ति ने एक बार अपने बयान में कहा था कि माता-पिता अपनी जवान बेटी को सांस्कारिक वातावरण में रहने का तरीका सिखाएं। यह किस तरह की सोच है? मतलब जिन लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार होता है या हुआ है वे संस्कारी नहीं थी और जिन लड़कों ने दुर्व्यवहार किया वे संस्कारी थे?
हाल ही आया एक और बयान भी देखिए तमिलनाडु के एक कलेक्टर ने यौन हिंसा के एक केस को लेकर कहा कि हो सकता है कि तीन साल की बच्ची ने कुछ ऐसा किया हो जिससे हमलावर भड़क गया और उसने ऐसी हरकत कर दी। यह किस तरह के तर्क हैं, जो आपराधिक कृत्यों को वैधता प्रदान करने का प्रयास कर रहे हैं? गायिका बेयोंस कहती हैं कि मैं एक ऐसा समुदाय बनाना चाहती हूं, जहां सभी जातियों की महिलाएं आपस में संवाद कर सकें। मैं महिलाओं को अपनी ताकत महसूस करने और अपनी कहानियां बताने के लिए एक स्पेस देना चाहती हूं। यही वास्तविक शक्ति है। उनके तर्क से सहमत हुआ जा सकता है क्योंकि महिला सशक्तीकरण का मतलब महिलाओं को मजबूत बनाना नहीं है। महिलाएं तो पहले से ही मजबूत हैं। इसका मतलब है महिलाओं की ताकत के प्रति दुनिया के देखने के तरीके को बदलना। देखा जाए तो सारी समस्या ही नजरिए की है अगर समाज महिलाओं के प्रति अपनी मानसिकता बदल ले तो ऐसी घटनाओं में कमी लाई जा सकती है। आवश्यकता है कि ऐसा कोई वैश्विक अभियान चलाया जाए।